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जियां - ऐ - मुहब्बत में तन्हा रहा हूँ ठहर जा जर

जियां - ऐ - मुहब्बत  में तन्हा  रहा हूँ
ठहर जा  जरा  ज़िन्दगी थक गया हूँ

गमो से  उबर जाने दे पहले मुझ को
वफ़ा - ऐ- मुहब्बत से मैं गम ज़दा हूँ

लबो की हसी को हकीकत न समझो
छुपा अश्क  पलकों पे अपने रखा  हूँ

उत्तर  जाने दे  अश्क  आँखों से मेरी
उन्ही  मंजिलों  को  में  पाने  रुका हूँ

हमारी  शरायत  सखत  थी  न पहले
किसी  अपने  ही  बेवफा  से जला हूँ

हसी  माँगू  या  तेरे  आँसू , खुशी के
लिखा  क्या  मुकद्दर  में ये देखता हूँ
     ( लक्ष्मण दावानी ✍ )

©laxman dawani
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