चाहती मैं भी थी कि पूरी आत्मीयता से गले लगाऊं एक हो जाऊं, दो हृदय एक दूसरे को ऐसे छुए कि कुछ कहने की आवश्यकता न हो, परस्पर हर भाव साझा हो जाये। पर हम दोनों के बीच लोग थे, यादें थी, ख्वाहिशें थी और कोई उसके सीने से चिपका हुआ था, बड़ी आकुलता से प्रतीक्षा की फिर क्या करती मैं हर बार उसकी पीठ से ही लिपट कर लौट गई। #ऐसे गले लगाना मुझको#