प्रकृति के कई रंग भोर की परिभाषा लिखते हैं, परेशां होके ओस से ये ठंडी की भाषा लिखते हैं। हर सुबह सुरज की चादर उठा हौले से जगाते हैं, मानो ये रंग मेरे जीवन में भी नए सूर्य उगाते हैं। प्रकृति हरियाली के रंगों सहित मातृत्व दर्शा रही, अपने बच्चों पे कभी प्रेम,कभी गुस्सा बरसा रही। माॅं मुस्कुराती शामों में, दोपहर को परेशान रहे, फूल सी महके,सिक्कों जैसे पत्ते पल्लू से खोले। कोहरे में ठिठुरन भरती है, पानी की ठंडक जैसे, मौसमों में रंग भरती, आई धूप में गर्माहट कैसे? इंद्रधनुष सी सतरंगी है,फसल लिए एक रंग की, प्रकृति नारी सी संसार समेटे देखो कितने ढंग की। सूक्ष्म जीवों का सम्मान है सब माॅं हेतु समान हैं, कण-कण में प्रेम प्रकृति के ममत्व का प्रमाण हैं। हवाऍं गाती कितने राग, कभी-कभी 'बैरागी' भी, प्रकृति की ढ़ेर अदाऍं, कभी सब अदा त्यागी भी। Image credit- My gallery... #yqdidi #yqhindi #morning #लेखन #मेरी_बै_रा_गी_कलम