इंसान और तस्वीर के बीच की एक छोटी सी वार्तालाप तस्वीर एक बात बता, तू क्यों हमेशा मुस्काती है जबकी असल ज़िदगी तो तकलीफ़ो में ही उलझी रह जाती है क्या तू छलावा है, दिखावा है या है झूठ क्यों हमेशा मनाते रहने पर भी खुशिया मुझसे जाती हैं रूठ प्रतिबिम्ब होना चाहिए ना तुझे तो मेरा फिर यह माज़रा क्या है सारा का सारा तस्वीर धीरे से बोली मैं हूँ तो तू मुझे देख कर हँस लेता है भले ही लम्हे चंद हो खुशी के, उन्हें याद तो कर लेता है जो मैंने कैद किए होते रोते हुए चेहरे उदास क्या कभी तू मुड़ कर देखना भी चाहता मुझको, होने को और निराश ऐ इंसान कुछ तो ले तो मुझसे सीख आखिर भले ही गम में, मुस्कुराया तो तू मेरे खातिर ज़िंदगी में दुख, परेशानी, कठिनाई होंगी अपार पर तस्वीरों में ही ढूंढ लेना तू, खुश रहने की वजह हज़ार इंसान और तस्वीर