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हाथ और साथ का फ़र्क़ साथ लेकर चलना अलग बात है हाथ

हाथ और साथ का फ़र्क़
साथ लेकर चलना अलग बात है हाथ में हाथ लेकर चलना अलग बात नदी के दो छोरो 
पर खड़े दो लोगों का हाथ पकड़कर चलना नदी की चौड़ाई से ज़्यादा दिलों के फ़ासले से तय होता है 
दिमाग़ में एक साथ रहने वाले मनु और अंबेडकर क्या दिल में रखे जा सकते हैं एक साथ 
एक नारी की चेतना में द्वंद्व करने वाली परंपराएँ और सिमोन की किताब क्या 
विचारों से निकलकर व्यवहार में निभाई जा सकती हैं एक साथ 
वह कौन-सी ज़बान है ज़िल्ले-इलाही जो गांधी का नाम लेकर युद्ध का आह्वान करती है
 वह कौन-से हाथ हैं जो दंगाइयों के डंडों में तिरंगा बाँधते हैं वह कौन-सी आदमीयत है जो 
आदमी को मज़हब से पहचानती है हास्य की वह कौन-सी कला है जो सिर्फ़ खिल्ली उड़ाना जानती है 
संविधान को बदले बिना क़ानून कैसे बदल जाते हैं समानता के दायरे में कैसे बाँधी जाती है 
स्वतंत्रता विषोत्पादन के युग को कैसे साबित किया जाता है : अमृतकाल यह समझने के लिए 
बंद कमरों की गोष्ठियाँ नहीं सिर्फ़ इस प्रक्रिया के महीन तंतुओं की समझ ज़रूरी है कि साथी
 हाथ बढ़ाना की लोक धुन कैसे बदली सबका साथ सबका विकास के सरकारी जुमलों में 
सियासत के लंबे फ़लसफ़े मुझे नहीं मालूम लंबी तक़रीरों में हाथ तंग है अपना तुम्हारी वाक्-पटुता
 के नकार में जन्मा इतना-सा वाक्य ही मेरा तर्क है कि संविधान और
 क़ानून का फ़र्क़ दरअस्ल, हाथ और साथ का फ़र्क़ है 


.

©पूर्वार्थ #हाथ
#साथ
हाथ और साथ का फ़र्क़
साथ लेकर चलना अलग बात है हाथ में हाथ लेकर चलना अलग बात नदी के दो छोरो 
पर खड़े दो लोगों का हाथ पकड़कर चलना नदी की चौड़ाई से ज़्यादा दिलों के फ़ासले से तय होता है 
दिमाग़ में एक साथ रहने वाले मनु और अंबेडकर क्या दिल में रखे जा सकते हैं एक साथ 
एक नारी की चेतना में द्वंद्व करने वाली परंपराएँ और सिमोन की किताब क्या 
विचारों से निकलकर व्यवहार में निभाई जा सकती हैं एक साथ 
वह कौन-सी ज़बान है ज़िल्ले-इलाही जो गांधी का नाम लेकर युद्ध का आह्वान करती है
 वह कौन-से हाथ हैं जो दंगाइयों के डंडों में तिरंगा बाँधते हैं वह कौन-सी आदमीयत है जो 
आदमी को मज़हब से पहचानती है हास्य की वह कौन-सी कला है जो सिर्फ़ खिल्ली उड़ाना जानती है 
संविधान को बदले बिना क़ानून कैसे बदल जाते हैं समानता के दायरे में कैसे बाँधी जाती है 
स्वतंत्रता विषोत्पादन के युग को कैसे साबित किया जाता है : अमृतकाल यह समझने के लिए 
बंद कमरों की गोष्ठियाँ नहीं सिर्फ़ इस प्रक्रिया के महीन तंतुओं की समझ ज़रूरी है कि साथी
 हाथ बढ़ाना की लोक धुन कैसे बदली सबका साथ सबका विकास के सरकारी जुमलों में 
सियासत के लंबे फ़लसफ़े मुझे नहीं मालूम लंबी तक़रीरों में हाथ तंग है अपना तुम्हारी वाक्-पटुता
 के नकार में जन्मा इतना-सा वाक्य ही मेरा तर्क है कि संविधान और
 क़ानून का फ़र्क़ दरअस्ल, हाथ और साथ का फ़र्क़ है 


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©पूर्वार्थ #हाथ
#साथ