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अपनी वफ़ाओं का उनको यकीं दिलाएँ भी कैसे,  हर एक व

अपनी वफ़ाओं का उनको यकीं दिलाएँ भी कैसे, 

हर एक वादा हमारा उनको धोका सा लगता है, 


अब तो उम्र कट जानी है बस इसी फिराक में, 

क्यों प्यार उनका आज भी हमें सच्चा लगता है, 


दिल आज भी मचलता है बस उसका ही होने को, 

जुनून ए वस्ल इसका आज भी मुझे कच्चा लगता है, 


मेरी गज़लें, गज़लें नहीं लगती उनको शायद, 

तेरे दिए ज़ख्मों का ये तो इक तोह्फ़ा लगता है, 


मेरी गज़लें अब भी कहाँ सुनता है कोई, 

मेरा अंदाज भी कहाँ उन्हें अच्छा लगता है,

©AshokKumar "आशिक्"
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