फूलों की सेज लिए वो खड़ी दरवाजे पर इंतेज़ार में प्रिय की, नज़रें टिकी उसकी राहों पर, कर पूर्ण श्रृंगार खड़ी वो त्यार आंचल में भर वो अपना प्यार, बालों में उसके मोगरे का फूल सजा आज बन बैठा था उसके सिर का ताज, घड़ी की सुइयों में भरी थी चुभन खल रही आँगन का सूनापन, हर आहट पर तलाशती वो उनकी कदमों की आहट, चमक उठे काजल से सजे उसके नयन सामने खड़ी जब पिया की वाहन. ज़ख्म के निशान अब भी थे बदन पर सितारे चमक रहे थे मगर कंधों पर, मुरझाए चेहरे खिल उठे थे फिर बाहों में जब भरा उसने आज फिर, शिक़वा दूर अब सारे उसके ख़ुदा से सामने खड़ा उसका पिया था. ©avinashjha पिया