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भावनाओं के बीच होती निष्कर्षविहीन भित्ति न जाने भ

भावनाओं के बीच होती
निष्कर्षविहीन भित्ति 
न जाने भुरुह को कब
क्यूँ और कैसे भूमिहीन
कर देती है
 
औ'
कल्पित मंदहास्य
से विवेचित होकर मरदुम
समस्त बंधनों से स्वमुक्ति पाकर
विहग के जैसे बहुतेरे उद्देश्यों
को अपने कंधों पे लिए
उड़ चलते हैं गगन में

फलतः
तथाकथित मौसमीय कुसुम की
खूबसूरत पंखुरियाँ
अपने माधुर्य के दंभ में
उस मरदुम की भर्त्सना करती रहती है
उसी भूमिहीन भुरुह की भाँति
जिसका कोई शिला नहीं होता है
औ'
छेड़ देती है एक कृत्रिम संग्राम...  
#विचलित_मन 
#कविता #कल्पना
#yqbaba#yqdidi#yqhindi

#mothertongue_verse
भावनाओं के बीच होती
निष्कर्षविहीन भित्ति 
न जाने भुरुह को कब
क्यूँ और कैसे भूमिहीन
कर देती है
 
औ'
कल्पित मंदहास्य
से विवेचित होकर मरदुम
समस्त बंधनों से स्वमुक्ति पाकर
विहग के जैसे बहुतेरे उद्देश्यों
को अपने कंधों पे लिए
उड़ चलते हैं गगन में

फलतः
तथाकथित मौसमीय कुसुम की
खूबसूरत पंखुरियाँ
अपने माधुर्य के दंभ में
उस मरदुम की भर्त्सना करती रहती है
उसी भूमिहीन भुरुह की भाँति
जिसका कोई शिला नहीं होता है
औ'
छेड़ देती है एक कृत्रिम संग्राम...  
#विचलित_मन 
#कविता #कल्पना
#yqbaba#yqdidi#yqhindi

#mothertongue_verse