उनकी ज़िन्दगी मे मैं कहीं मौजूद ही नहीं और उनकी मौजूदगी से मेरी ज़िन्दगी जुड़ी है वो आएंगे मुझसे करने ईक दिन सूखन ए खास ये कयामत शूदा खबर हाय माहौल मे उड़ी है सीधा क्या चलेंगे वो मेरे साथ मन्ज़िल तक सभी रहरवान ए सफर की यहाँ राहें हीं मूडी है क्या तवक़्क़ो रखेगा ये दिल अब किसी से जब बुराई पे आमादा मेरी तकदीर अड़ी है मेरी मन्ज़िल तो है यारों मानिंद ए ला माकां बस ढुंढता हुं मै उसे जाने कहाँ वो खडी़ है शीर ओ शहद भी हेच है अलफ़ाज़ पे मेरे मगर दें वो दुशनाम तो लगे मोतीयों की लड़ीं है अफसोस गुज़ारि के वो दिन हाय ना लौटें तकदीर के हाथों मे अब जादू की छड़ी है तेरे इश्क़ के गम से ऐसी मेरी दोस्ती हुई जैसे दहर मे खूशीयां ही बीमार पड़ीं हैं तेरी इन्सानियत से कम आशिक़ कुछ नहीं जहाँ मे चर्चा ए हैवानियत मे उनकी शिनाख्त बड़ी है #OpenPoetry, मौजूद नहीं