शहर की परिभाषा अजीब है, भीड़ है दूर तक लेकिन अकेले में हर एक हैl शिक्षा तो है लेकिन संस्कार दूर हो गए, बहु -बेटे से माँ -बाप दूर हो गए l शहर की परिभाषा अजीब है, भीड़ है दूर तक लेकिन अकेले में हर एक हैl काम के जूनून मेंरिश्ते फीके पड़ गए, सारे चाहने वाले हमसे दूर हो गए l शहर की परिभाषा अजीब है, भीड़ है दूर तक लेकिन अकेले में हर एक हैl खुली हवा को मोहताज हो गए, पैसों के आफ़ताब हो गएl भूल गए गाँव को, अपनी पहचान को l शहर की परिभाषा अजीब है....ll पीपल की छाव और आम की मिठास भूल गए, यार की यारी और फूल की फूलवारी भूल गएl आ गए शहर बनाने लगे एक डिब्बे जैसा छोटा-सा घर, अपने गाँव के बड़े से घर से नाता भूल गएl शहर की परिभाषा अजीब है..… l मन का चैन, दिल का शकुन भूल गए, अब तो केवल झूठ का बोल सीख गए l घर बनाने की कोशिश वे चाँद पर रहे, अपने बचपन के घर को वे भूल गएl दादा -दादी का प्यार, नानी की कहानी, माँ का दुलार और पापा की डांट भूल गए, शहर में आकर वे अपने जज्बात भूल गएl शहर की परिभाषा अजीब है... l याद उनको करो, जो तुम्हारे थे और तुम्हारे लिए जी गए, अपना सब कुछ तुम्हीं पर वो खो गए l हे प्रार्थना, यही कुछ बड़ा कर दो, उनके हिस्से की खुशियां अदा कर दो, गाँव को अपने ऊँचा-सा सम्मान दो l अपने बचपन की मिट्टी को पहचान लोl शहर की परिभाषा अजीब हैl भीड़ है दूर तक लेकिन अकेले में हर एक हैl ll जय हिंद ll उमेश सिंह श्री अयोध्या ©umesh singh शहर की परिभाषा अजीब है l #safarnama