खामोशी नजर नहीं आती... " सिर्फ " चुभन महसूस होता है... " जख्म " जो पल रहा अंदर, अपनों का आंगन भी दुश्मन, नजर आता है। सांसे भी अब सितम ढाने लगा, " अब " चैन कहां नज़र आता है। धोखा-रूसवा हर दर्द समाहित है, सीने में। मंजिल नहीं, खस्ताहाल राह नजर आता है। " तस्वीर " कब तक धुंधली रहेगी, जीवन सिर्फ तमाशा नजर आता है। मचलता मन, सितम ढाता तन, एक अलग आभास नज़र आता है। खामोशी नजर नहीं आती... " सिर्फ " चुभन महसूस होता है।। """"""""""""""""""""""""""""""""""""""' प्रमोद मालाकार की कलम से 12.07.2003 """"""""""""""""""""" ©pramod malakar 63... #standAlone