शीर्षक:- दीया हो सके तो इस दीये को… मुझसे कहीं दूर ले जाओ, इसपर हक़ मेरा नहीं है… इसकी रौशनी में तुम… यूँ ना मुझे जलाओ…। भले ही इस दीये ने… रौशन किया है मेरा जहाँ, पर यूँ किसी के साथ … कोई कबतक चलेगा…!? माना एक अरसे से… जला रखा है उसने… खुद को मेरे लिए… पर बेगानी रौशनी में… कोई कबतक जीयेगा…!? हो सके तो इस दीये को… मुझसे कहीं दूर ले जाओ, इसपर हक़ मेरा नहीं है… इसकी रौशनी में तुम… यूँ ना मुझे जलाओ…। प्रीति आर्या ©Preeti Arya aka Priyeet #दीया #poetryoftheday #poemsbyme #priyeetwrites #TuesdayMood #Hindi #poem