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लाचारी थी क्या तनता, निर्धनता उसका धन था , फाके

लाचारी  थी  क्या तनता,
निर्धनता उसका धन था ,

फाके  पड़ते  घर उसके,
काम  रहे उनका बनता,

लोगों की परवाह किसे,
भाँड में जाए ये जनता,

निकले इनका दीवाला,
उनकी दीवाली मनता,

आ  जाते  बहकावे में,
भोले   हैं   संता  बंता,

ख़ुद ही अपने हाथों से,
बन जाते  अपना हँता,

देख के ये मंजर 'गुंजन',
सब्र  नहीं  करते बनता,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #लाचारी थी क्या तनता#
लाचारी  थी  क्या तनता,
निर्धनता उसका धन था ,

फाके  पड़ते  घर उसके,
काम  रहे उनका बनता,

लोगों की परवाह किसे,
भाँड में जाए ये जनता,

निकले इनका दीवाला,
उनकी दीवाली मनता,

आ  जाते  बहकावे में,
भोले   हैं   संता  बंता,

ख़ुद ही अपने हाथों से,
बन जाते  अपना हँता,

देख के ये मंजर 'गुंजन',
सब्र  नहीं  करते बनता,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #लाचारी थी क्या तनता#