आत्महत्या:-एक पाप आत्महत्या जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह न केवल स्वयं को मृत्यु प्रदान करता है अपितु 9 माह गर्भ में रखने वाली मां की भी हत्या कर देता है। उस प्रकृति की हत्या करता है जिसने उसे मूलभूत आवश्यकताओं से परिपूर्ण किया। आत्महत्या करने वाला यह विचार नहीं करता कि उसके आत्महत्या कर देने से उसके द्वारा कितनी ही हत्याएं कर दी जाती हैं। जिस कारण उसकी आत्मा को शांति नहीं प्राप्त होती वह इस संसार में बिना देह के भटकता रहता है। निजी स्वार्थ में निजी शांति के लिए स्वयं को मृत्यु प्रदान करना भी एक पाप है जिसके पश्चाताप का भी समय नहीं मिल पाता। और जहां तक रही बात युवाओं किसानों की आत्महत्या का कारण तो यह समाज और इसी समाज की सरकारें करने पर विवश करती हैं। किंतु अगर कोई व्यक्ति बिना कोई अन्य मार्ग समझे विचार करे अगर आत्महत्या हत्या करता है तो यह एक जघन्य अपराध है जो व्यक्ति स्वयं के प्रति करता है और इस अपराध का दंड संसार समाज सरकार या कोई प्रशासन नहीं दे सकती अपितु इसका दंड स्वयं ईश्वर देता है।