पल्लव की डायरी डोर टूटी पतंग कट जाती है तरक्की के दौर में मीनारे खड़ी हो जाती है ताकते सरकारी जब अजनबी बन जाती है चुनिंदा लोगो के लिये हमारी रोजी रोटी नीलाम कर जाती है आसमानो पर बैठी सरकारे जमीनों का सौदा कर जाती है सब्सिडी बोझ बताकर बन्द हो जाती है आवाज आवाम की सुनना सरकारों में बंद हो जाती है तब हको की आवाज के लिये भारत बंद करने की जरूरत हो जाती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" आवाज आवाम की सुनना बंद हो जाती है #bharatband