इंतज़ार का कैसा ये मीठा फल बन गया, मेरा आज उसका बीता कल बन गया। जल रहा है वज़ूद मेरा कमबख्त याद मे तेरी, अंगार वो तेरे संग बिताया हर एक पल बन गया है। तू आयी देर से ये भूल है तेरी,करूँ मैं क्या? ब्याज़ जो इश्क़ का अब असल बन गया है। वापस आ एक दफा और देख भी ले हालत मेरी, इंसान से आशिक़ ये बंदा मुसलसल बन गया है। तुझे शिकायत थी ना "ज़िन्दगी" रवैये से मेरी, तू जो गयी तो देख हर लफ्ज़ हर्शल बन गया