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आदत सी पड़ गई है मिलावट की आजकल आती न बू कहीं स

आदत सी पड़ गई है
 मिलावट की आजकल
  आती न बू कहीं से
   बगावत की आजकल
          हम जानतें हैं कोई चीज शुद्ध नही है 
         फिर भी ठगों के काम पर क्रुद्ध नही है
   परवाह न किसी को
    इज्जत की आजकल
  असली का अब किसी को पहचान नहीं है
   ऐसी दुकान ढूंढना आसान नहीं है
         सबको लुभाती सिर्फ
          सजावट है आजकल
   दौलत की चाह थी रखा ईमान ताख पर
    चाहे भले लग जाए फिर बट्टा ही साख पर
           भाती सभी को मुफ़्त की
             दावत है आजकल

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
   मिलावट

मिलावट #कविता

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