लकीरें खिच गई इतनी,मिटाए मिट नहीं पाती, तड़प के हम यूं रह जाते,बैचैनी रुक नहीं पाती। भला कैसे बता तुझको, कहे जो हम पे गुजरे है, खिलाड़ी बन गई किस्मत,वफ़ा पर झुक नहीं पाती। संजीव निगम "अनाम" #बैचैनी