वो बचपन की यादें........... परत दर परत कहीं खो गयीं वो मस्ताना मौसम वो प्रकृति का अनछुआ तन वो लताओं व शाखाओं की खनक वह मिट्टी की रौनक वह खुला आसमां और दिलों का सिमटा जहाँ सबके मिजाज बदल गये तकनीकी व विकास की आहूती चढ़ गये बस बदला नहीं तो कुछ वह मेरी माँ.......... आज भी उनकी आँखों में वही नमी है l आज भी उनके आँचल मेें वही छॉव है l आज भी उनकी साँसों से वही ममता बिखरती है l आज भी उनके हाथों में दुलार भरी झप्पी है और दिल ....... दिल तो पृथक ही नहीं है जब भी होती हूँ पास उनके खो जाती हूँ बचपन में और बन जाती हूँ बच्ची छोटी सी l पारुल शर्मा वो बचपन की यादें........... परत दर परत कहीं खो गयीं वो मस्ताना मौसम वो प्रकृति का अनछुआ तन वो लताओं व शाखाओं की खनक वह मिट्टी की रौनक वह खुला आसमां और दिलों का सिमटा जहाँ