कल रात फिर एक हसीन चेहरा, मेरी निगाहों के रूबरू था | गुलाब की पंखुड़ियों जैसे उसके खूबसूरत होंठ थे, खिले फूल की मानिंद वो मुस्करा रही थी | फिर यका यक मेरे हाथ उसे छूने को बढ़ गए मगर वो वहां नहीं थी, कहीं नहीं थी, बस मै था मेरी तन्हाई थी और खामोश फजा का ठहराव, जो मुझे नींद से बेदार हो जाने का अहसास दिला रहा था | ©Suresh Gulia in Kiran malav Halima Usmani Gori Geet Geetu