इक सफर तय करते हुये थक गया हूँ, मैं बहुत चलते हुये थक गया हूँ.. बेवजह भटकते हुये दफ्तरों के जंगल में, जिंदगी गुजर बसर करते हुये थक गया हूँ.. कितना आसान है वक्त का गुजर जाना, जिंदा रहने की चाह में मरते हुये थक गया हूँ.. मत पूछ क्या गुजरी है उन दरख्तो(पेड़ो) पर, जिनकी छाँव में कुलहाड़ी रखते थक गया हूँ.. कहने को तो यहाँ हर कोई अपना है 'अभिषेक' ,बस खुद सबका बनते हुये थक गया हूँ✒️✒️ ©Abhishek Ranjan #थकन