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शरमाया हुआ चांद फिर से आसमान में खुद को समेट रही

शरमाया हुआ चांद फिर से
  आसमान में खुद को समेट रही जैसे 
   ख्वाब में देखा अपना बनाया एक घर
  घर के पर्दे में तुम अंगुली लपेट रही जैसे 

कमरे की दीवार पर हमारी तस्वीर लगी है
मैं मुस्कुराता चाय पीते आंखे सेंक रहा जैसे 
हमारी कुछ हद तक की मुहब्बती कहानी
हम दोनों बैठ बरामदे में देख रहा जैसे 

आखिर कुछ नजराने शायद फिर से देख पाता
     ये सुबह ना होती सूरज पैगाम लेकर ना आता    
मैं शायद आपको भी उस ख्वाब में बुलाता ऐसे
दिखाता आपका मुस्कुराता हुआ चेहरा या घर
   घर के पर्दे में तुम अंगुली लपेट रही जैसे

©कुमार दीपेन्द्र #MoonHiding
शरमाया हुआ चांद फिर से
  आसमान में खुद को समेट रही जैसे 
   ख्वाब में देखा अपना बनाया एक घर
  घर के पर्दे में तुम अंगुली लपेट रही जैसे 

कमरे की दीवार पर हमारी तस्वीर लगी है
मैं मुस्कुराता चाय पीते आंखे सेंक रहा जैसे 
हमारी कुछ हद तक की मुहब्बती कहानी
हम दोनों बैठ बरामदे में देख रहा जैसे 

आखिर कुछ नजराने शायद फिर से देख पाता
     ये सुबह ना होती सूरज पैगाम लेकर ना आता    
मैं शायद आपको भी उस ख्वाब में बुलाता ऐसे
दिखाता आपका मुस्कुराता हुआ चेहरा या घर
   घर के पर्दे में तुम अंगुली लपेट रही जैसे

©कुमार दीपेन्द्र #MoonHiding