शरमाया हुआ चांद फिर से आसमान में खुद को समेट रही जैसे ख्वाब में देखा अपना बनाया एक घर घर के पर्दे में तुम अंगुली लपेट रही जैसे कमरे की दीवार पर हमारी तस्वीर लगी है मैं मुस्कुराता चाय पीते आंखे सेंक रहा जैसे हमारी कुछ हद तक की मुहब्बती कहानी हम दोनों बैठ बरामदे में देख रहा जैसे आखिर कुछ नजराने शायद फिर से देख पाता ये सुबह ना होती सूरज पैगाम लेकर ना आता मैं शायद आपको भी उस ख्वाब में बुलाता ऐसे दिखाता आपका मुस्कुराता हुआ चेहरा या घर घर के पर्दे में तुम अंगुली लपेट रही जैसे ©कुमार दीपेन्द्र #MoonHiding