दिख रहा है मुझको वो धुंधला नज़ारा । खिड़की के कपाट को थर्राता, चंचल हवा की अठखेलियों भरा, मौसम का हसीन साया । आया है मेरे कमरे में धूप का एक टुकड़ा, तिलमिला कर उठ गए, नन्हे वो धूल के गुच्छे, उड़ चले किसी चाह में मंज़िल से अंजान । बादल सोचता है,क्यों नहीं मैं करता इनका स्वागत अभी । सूर्य के मुखद्वार पर खड़ा वो ये नहीं देखता; जो धूप का टुकड़ा जो ले चला था उन धूमिल कणों को । खो गया है कहीं उसी के आसेब में । Windows in winters. Click on #DhoopKeKisse for more musings on sunlight Translation - I can see that distant blurred view Knocking on my window