White रण का मदन जब चरम पर चढ़ा, हर दिशा में केवल प्रचंड था। कौरव दल थर्राया साहस देख, अभिमन्यु का रण अनोखा प्रबंध था। गदा से धरा हिलाने लगा वो, महारथियों को धूल चटाने लगा वो। पर चक्रव्यूह के छल ने उसे जकड़ा, धर्म और अधर्म का सवाल उठाने लगा वो। तभी कर्ण बोला, "हे अभिमन्यु महान, तुमने अकेले किया पूरे दल का अपमान। पर रण में नीति की सीमा भूल गए, अपनी ही गरिमा के जाल में झूल गए।" अभिमन्यु हँसकर गर्जना कर उठा, "नीति क्या, जो अधर्म को साथ रखे। मेरी मृत्यु से सत्य अमर रहेगा, कौरव कुल का अभिमान फिर मिटेगा।" रक्त से लथपथ भी अमर मुस्कान थी, शौर्य की प्रतिमा जैसे गगन गान थी। अभिमन्यु गिरा, पर विजय का मंत्र था, धर्म की जय में उसका हर कण बसा। ©"सीमा"अमन सिंह #महाभारत #अभिमन्यु #banarasi_Chhora