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कितने नश्तर ए अल्फ़ाज़ छुपाये बैठे हो, बताओ तो हमें

कितने नश्तर ए अल्फ़ाज़ छुपाये बैठे हो, बताओ तो
हमें हमारे उस चेहरे से आज मिलाओ तो
झूठ मेरे हिस्से का हो या तुम्हारे हिस्से का,
किस्सा कोई फ़िर नया सुनाओ तो। 

चलो माना कि मुज़रिम हि है, निगाहों में तेरे हम,
थोड़े और कोड़े हम पर बरसाओ तो
तेरी तीखी नज़र के तेज़ाब में जलने से बेहतर 
तेरी क़ैद में उम्र गुज़ार दे
सज़ा जो हो, जैसी हो, पर कोई सज़ा सुनाओ तो। 

हम तो आशिक़ मिज़ाज़ है, 
पलको के गिरने और उठने का हिसाब रखते थे,
हम तो मुहोब्बत के पाबंद थे, 
नज़रो में कैद रह कर खुद को मलंग रखते थे
नफ़रत जो घुली उन आँखो में, दम घुटने लगा, 
आप पलक पे रखते थे, वो आशिया भी अब छूटने लगा,
अब घर कहा बसाये वो ठिकाना भी कोई बताओ तो।

खैर मैं तो तरन्नुम में बात करने का आदी हूं। 
मानो न मानो, आदमी थोड़ा जसबादी हूं
ज़िन्दगी के इस मोड़ पे आ गया हूं, 
अपनी आधी-अधूरी सी नज़्म लेकर, कहा जाए, 
 किसे सुनाए, ये ज़रा बताओ तो।
 #मुहोब्बत #जस्बात
कितने नश्तर ए अल्फ़ाज़ छुपाये बैठे हो, बताओ तो
हमें हमारे उस चेहरे से आज मिलाओ तो
झूठ मेरे हिस्से का हो या तुम्हारे हिस्से का,
किस्सा कोई फ़िर नया सुनाओ तो। 

चलो माना कि मुज़रिम हि है, निगाहों में तेरे हम,
थोड़े और कोड़े हम पर बरसाओ तो
तेरी तीखी नज़र के तेज़ाब में जलने से बेहतर 
तेरी क़ैद में उम्र गुज़ार दे
सज़ा जो हो, जैसी हो, पर कोई सज़ा सुनाओ तो। 

हम तो आशिक़ मिज़ाज़ है, 
पलको के गिरने और उठने का हिसाब रखते थे,
हम तो मुहोब्बत के पाबंद थे, 
नज़रो में कैद रह कर खुद को मलंग रखते थे
नफ़रत जो घुली उन आँखो में, दम घुटने लगा, 
आप पलक पे रखते थे, वो आशिया भी अब छूटने लगा,
अब घर कहा बसाये वो ठिकाना भी कोई बताओ तो।

खैर मैं तो तरन्नुम में बात करने का आदी हूं। 
मानो न मानो, आदमी थोड़ा जसबादी हूं
ज़िन्दगी के इस मोड़ पे आ गया हूं, 
अपनी आधी-अधूरी सी नज़्म लेकर, कहा जाए, 
 किसे सुनाए, ये ज़रा बताओ तो।
 #मुहोब्बत #जस्बात