मुफलिसी ऐसी कि शोहरत के तलबगार हो गये, निवाले भी सब भूख के खिदमतगार हो गये। सिर्फ इल्म ही महफ़िल में महफूज़ रह सकी इस्तकबाल में यहां सियासत के दरबार हो गये।। ©प्रेम शंकर "नूरपुरिया" खिदमतगार #hands