आस्था के शहर में हूँ मोहब्बत के नगर में हूँ। कोई नाम तो पूछो मैं अपने महबूब के आँगन में हूँ। तू मिलना न चाहें मुझसे मैं मिलना चाहूं तुझसे पर कैसी ये मज़बूरी हैं ख़ुद खफ़ा हैं सिर्फ़ मुझसे।