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हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए दो दिन की ज़िंदग

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए
दो दिन की ज़िंदगी में हज़ारों बरस जिए

सदियों पे इख़्तियार नहीं था हमारा दोस्त
दो चार लम्हे बस में थे दो चार बस जिए
---Gulzar

©Shayra
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