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लाशों का अभी तो झांकी है +++++++++++++++++++++++++

लाशों का अभी तो झांकी है
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तूफान उठना  अभी  बांकी है , लाशों का अभी  तो झांकी है ।
धधक  रही  है धरती सारी , मानवता  का  जलता  राखी है ।।
पहाड़  खड़ा  है अधर्म का आगे , धर्म का बुझ  रहा  बाती है ।
इतिहास  पुराना   देखो  तुम , हर  एक का अपना  साथी है ।।
दुख के  दरिया  में डूब रहे हो , बवंडर उठना  अभी  बाकी है ।
मौज में धरा पर  उछल रहे हो , मंद बयार का  अभी बेला है ।
कश्मीर से  कन्याकुमारी तक , जिहादी जमात  का रेला है ।
हर तरफ  है धुआं धुआं , हर इंसान  अभी अकेला है ।।
खौफनाक वक्त है आने वाला , हो रहा अंधेरा है ।
दिक्कत   नहीं  हमें  खून  के   दरिया  से ,
मौत के आगोश में हिंदुओं का मेला है ।
ख्वाहिशें हजार है अंतिम वक्त में ,
जल रहा  है उमंग  भी  और वेदना  अकेला है ।
मूर्खों का शिकार अभी बाकी है ,
दर्द जो मिल रहा जलवा शायद नहीं काफी है ।
तूफान उठना अभी बाकी है , लाशों का अभी तो झांकी है ।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से

©pramod malakar #लाशों का अभी तो झांकी है।
लाशों का अभी तो झांकी है
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तूफान उठना  अभी  बांकी है , लाशों का अभी  तो झांकी है ।
धधक  रही  है धरती सारी , मानवता  का  जलता  राखी है ।।
पहाड़  खड़ा  है अधर्म का आगे , धर्म का बुझ  रहा  बाती है ।
इतिहास  पुराना   देखो  तुम , हर  एक का अपना  साथी है ।।
दुख के  दरिया  में डूब रहे हो , बवंडर उठना  अभी  बाकी है ।
मौज में धरा पर  उछल रहे हो , मंद बयार का  अभी बेला है ।
कश्मीर से  कन्याकुमारी तक , जिहादी जमात  का रेला है ।
हर तरफ  है धुआं धुआं , हर इंसान  अभी अकेला है ।।
खौफनाक वक्त है आने वाला , हो रहा अंधेरा है ।
दिक्कत   नहीं  हमें  खून  के   दरिया  से ,
मौत के आगोश में हिंदुओं का मेला है ।
ख्वाहिशें हजार है अंतिम वक्त में ,
जल रहा  है उमंग  भी  और वेदना  अकेला है ।
मूर्खों का शिकार अभी बाकी है ,
दर्द जो मिल रहा जलवा शायद नहीं काफी है ।
तूफान उठना अभी बाकी है , लाशों का अभी तो झांकी है ।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से

©pramod malakar #लाशों का अभी तो झांकी है।

#लाशों का अभी तो झांकी है। #कविता