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अपमान की ज्वाला पिता आज खून के अश्रू रोया है सींचा

अपमान की ज्वाला
पिता आज खून के अश्रू रोया है
सींचा जिसे आज वही बोला है 
अपमान में सब कुछ खोया है 
जीवन भर जिसे अमृत पिलाया है
 सारा जहर उसीने उगल दिया है
वो तो  नीलकंठ बन बैठा 
हलाहल विष कंठ में धर बेठा
स्व श्वेत वस्त्र हुए आज मैले हैं 
अपने ही सुमन के कांटे चुभे रहे हैं 
अपना उसने रंग दिखाया होगा 
सागर भी ज्वाला में जला होगा
अपमान की ज्वाला
पिता आज खून के अश्रू रोया है
सींचा जिसे आज वही बोला है 
अपमान में सब कुछ खोया है 
जीवन भर जिसे अमृत पिलाया है
 सारा जहर उसीने उगल दिया है
वो तो  नीलकंठ बन बैठा 
हलाहल विष कंठ में धर बेठा
स्व श्वेत वस्त्र हुए आज मैले हैं 
अपने ही सुमन के कांटे चुभे रहे हैं 
अपना उसने रंग दिखाया होगा 
सागर भी ज्वाला में जला होगा