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आघात कर रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है, जो

आघात कर

रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है,
जो ढल रहा है खुद में ही ये कैसा परिवेश है,
जो ताप पर है सांप जैसा फन निकाले देख रहा,
जहर में भी मिठास है तू मूक हो क्यूं मौन रहा,
ये युद्ध है कुरुक्षेत्र का तू सारथी क्यूं बन गया,
धनुष उठा प्रहार कर जो तेरा है उसपर है आघात कर।

शस्त्र त्याग भूमि गत क्यों घुटनों के बल चल रहा,
शत्रु है ये मित्र नहीं जो हसी में तेरा मान छल रहा,
मिटा दे तू पाप अब मिटा दे पापियों का घमंड,
सब देख तुझे कांप जाए दिखा दे ऐसा रूप प्रचंड,
जो तुझपे उठे सवाल गर्व से जवाब पर सवार कर,
अपने पराए का भेद नहीं बस तू आघात कर।

जो तुझमें है क्रोध की लपटें जला के इसको भस्म कर,
ना हो सके तो घूंट पी और वक्त पर थोड़ा सब्र कर,
नियति ने सबको दिया है तेरा भी वक्त आएगा,
बिना की भी शस्त्र का तो लंका पर विजय फहराएगा,
डर को बना हथियार और पर सिने पर प्रहार कर,
अपने पराए का भेद नहीं बस तू आघात कर।

अपने साथ होंगे जब तुझमें सब समर्थ होगा,
किन्तु समय कभी ना कभी तो विभक्त होगा,
लहू का तू घूंट ले और शत्रु का मन से हार कर,
उठा जबान और बस तू आघात कर आघात कर। आघात कर

रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है,
जो ढल रहा है खुद में ही ये कैसा परिवेश है,
जो ताप पर है सांप जैसा फन निकाले देख रहा,
जहर में भी मिठास है तू मूक हो क्यूं मौन रहा,
ये युद्ध है कुरुक्षेत्र का तू सारथी क्यूं बन गया,
धनुष उठा प्रहार कर जो तेरा है उसपर है आघात कर।
आघात कर

रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है,
जो ढल रहा है खुद में ही ये कैसा परिवेश है,
जो ताप पर है सांप जैसा फन निकाले देख रहा,
जहर में भी मिठास है तू मूक हो क्यूं मौन रहा,
ये युद्ध है कुरुक्षेत्र का तू सारथी क्यूं बन गया,
धनुष उठा प्रहार कर जो तेरा है उसपर है आघात कर।

शस्त्र त्याग भूमि गत क्यों घुटनों के बल चल रहा,
शत्रु है ये मित्र नहीं जो हसी में तेरा मान छल रहा,
मिटा दे तू पाप अब मिटा दे पापियों का घमंड,
सब देख तुझे कांप जाए दिखा दे ऐसा रूप प्रचंड,
जो तुझपे उठे सवाल गर्व से जवाब पर सवार कर,
अपने पराए का भेद नहीं बस तू आघात कर।

जो तुझमें है क्रोध की लपटें जला के इसको भस्म कर,
ना हो सके तो घूंट पी और वक्त पर थोड़ा सब्र कर,
नियति ने सबको दिया है तेरा भी वक्त आएगा,
बिना की भी शस्त्र का तो लंका पर विजय फहराएगा,
डर को बना हथियार और पर सिने पर प्रहार कर,
अपने पराए का भेद नहीं बस तू आघात कर।

अपने साथ होंगे जब तुझमें सब समर्थ होगा,
किन्तु समय कभी ना कभी तो विभक्त होगा,
लहू का तू घूंट ले और शत्रु का मन से हार कर,
उठा जबान और बस तू आघात कर आघात कर। आघात कर

रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है,
जो ढल रहा है खुद में ही ये कैसा परिवेश है,
जो ताप पर है सांप जैसा फन निकाले देख रहा,
जहर में भी मिठास है तू मूक हो क्यूं मौन रहा,
ये युद्ध है कुरुक्षेत्र का तू सारथी क्यूं बन गया,
धनुष उठा प्रहार कर जो तेरा है उसपर है आघात कर।
sbhaskar7100

S. Bhaskar

New Creator

आघात कर रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है, जो ढल रहा है खुद में ही ये कैसा परिवेश है, जो ताप पर है सांप जैसा फन निकाले देख रहा, जहर में भी मिठास है तू मूक हो क्यूं मौन रहा, ये युद्ध है कुरुक्षेत्र का तू सारथी क्यूं बन गया, धनुष उठा प्रहार कर जो तेरा है उसपर है आघात कर। #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqhindi #yqquotes #yqaestheticthoughts #yqbhaskar