अजनबी था शहर कल तक रास्ते भी गुमशुदा आसमां अपना सा था बस चांद बेगाना लगा धूप थी वैसी ही कच्ची दोपहर अलसाई सी शाम के साये थे धुंधले रात कुछ घबराई सी रात की आगोश में वीरानियों का शोर था सब तो थे अपने ही बस खुद का न कोई ठौर था.... प्रीति #बदले ठिकाने #yqdidi