क्या-क्या ख़्वाब सजाए थे मैंने, बस इक हमदम की ख़्वाहिश में। मिला ना अब तक कोई हमदम, बस लगे रहे ज़ोर-आज़माइश में। कमबख्त सपने पूरे होते हैं सारे, गर दिल से उनकी क़दर करो। मिलता नहीं सब कुछ कभी भी, बद-क़िस्मत दिल की फरमाइश में। अपनी शख्सियत खुद पहचानो, खुद को इतना तुम प्यार करो। क्या मिलेगा तुमको अब यहाँ, इस बेवज़ह की नुमाइश में।— % & ♥️ Challenge-828 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।