रात अब बढ़ने लगी है। चाँदनी जलने लगी है।। तीरगी को डर है कैसा। रोशनी कहने लगी है।। बिन तुम्हारे जिंदगी अब। क्या कहें चलने लगी है।। आदमी मजबूर है अब। उम्र भी ढ़लने लगी है।। फूल का जो हश्र देखा। तितलियां डरने लगी है।। छत पे देखा आज आलम। बिजलियाँ गिरने लगी है।। बेदिली ही बेदिली थी। क्यूँ हवा चलने लगी है।। कुछ घरों से पूछना है। आग क्यूँ लगने लगी है।। मेरी हस्ती कुछ नहीं थी। वो जुबां हिलने लगी है।। हम अधूरे लोग बेजां। बात ये उठने लगी है।। आपको मेरी जरूरत। क्या कहा पड़ने लगी है।।