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तेरी चाहत को सराहा मैंने, चाहकर भी नहीं चाहा मैंन

तेरी चाहत को सराहा मैंने, 
चाहकर भी नहीं चाहा मैंने, 

उजाड़ बियाबान सड़कों पर,
दौड़कर कुछ नहीं पाया मैंने,

मुफ़लिसी इस क़दर हुई हावी, 
बोझ  हँसकर  ही उठाया मैंने, 

रौशनी  में  नहाई  रात  मगर, 
दर्द  का  गीत  न  गाया  मैंने, 

सरे  बाज़ार  कर  लिया  सौदा,
अपनी क़िस्मत को भुनाया मैंने,

लोभ-लालच का संवरण करके, 
दिल को बच्चे सा बहलाया मैंने, 

दोष मढ़ना किसी पे क्यों 'गुंजन',
आईना  ख़ुद  को  दिखाया  मैंने,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #आईना ख़ुद को दिखाया मैंने#
तेरी चाहत को सराहा मैंने, 
चाहकर भी नहीं चाहा मैंने, 

उजाड़ बियाबान सड़कों पर,
दौड़कर कुछ नहीं पाया मैंने,

मुफ़लिसी इस क़दर हुई हावी, 
बोझ  हँसकर  ही उठाया मैंने, 

रौशनी  में  नहाई  रात  मगर, 
दर्द  का  गीत  न  गाया  मैंने, 

सरे  बाज़ार  कर  लिया  सौदा,
अपनी क़िस्मत को भुनाया मैंने,

लोभ-लालच का संवरण करके, 
दिल को बच्चे सा बहलाया मैंने, 

दोष मढ़ना किसी पे क्यों 'गुंजन',
आईना  ख़ुद  को  दिखाया  मैंने,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #आईना ख़ुद को दिखाया मैंने#

#आईना ख़ुद को दिखाया मैंने# #कविता