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पेज-60 राकेश ने दरवाज़े से झांक कर देखा तो चारों धा

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राकेश ने दरवाज़े से झांक कर देखा तो चारों धाम एक साथ.. हैरत से राकेश ने सोचा -"कमाल है..! वहाँ सारा नोजोटो आज भरी दोपहरी में शॉपिंग मॉल का उद्धार करने गया है वहीं ये चारों दिव्यात्माएं आराम से बैठकर क्या कर रहे थे.. पढ़िए जरा.. 
पुष्पा जी का एक हाथ दिव्या की गोद में.. दिव्या का एक हाथ राखी जी गोद में और राखी जी का एक हाथ सुधा की गोद में..! ना जाने कितनी मेंहदी की कोन नीचे दबी कुचली सी पिचली हुईं सी आखिरी सांसे ले रही थीं.. मानो उनसे कह रहीं हों.. "हम जितनी रह गई हैं उसे भी अपनी अंगुलियों की पोर में भरकर हमें क़ैद से मुक्त करो.. दृश्य सुहावना था.. मगर कौन कितना मेंहदी लगाना जानता था.. ये तो हाथों में बनते रेखा चित्र से पूछे कोई..भई समय का सदोपयोग तो कोई इनसे सीखे..
खैर कथाकार ने सजग करते हुये राकेश को प्रेरित किया और
आगे कैप्शन में.. 🙏

©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी 
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राकेश-कहिये पुष्पा जी इस कालोनी में आपको क्या प्रॉब्लम है..? 
पुष्पा जी- प्रॉब्लम है मेरे बाथरूम में लगा शॉवर..! मेरे घर में जो शॉवर था मैं उसे टॉप से राइट टर्न करती थी तो वो झरना बन जाता था, और इस नये आशियाना में शॉवर को टॉप से लेफ्ट टर्न करो तब झरना बनता है... राकेश-ओह्ह.. तुमने ठीक से चेक किया.. 🤔
पुष्पा जी -हाँ तो क्या... मुझे आदत पड़ गई है टॉप से राइट टर्न करने की.. इसलिये मुझे वैसा ही सिस्टम चाहिए..
सुधा-अच्छा..! चलो दिखाओ जरा क्या प्रॉब्लम है..?  
पुष्पा जी-हाँ हाँ चलो चलो.. मेरे पिच्छू पिच्छू.. 
रेलगाड़ी... छुक पुक छुक पुक.. उइ माँ..
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राकेश ने दरवाज़े से झांक कर देखा तो चारों धाम एक साथ.. हैरत से राकेश ने सोचा -"कमाल है..! वहाँ सारा नोजोटो आज भरी दोपहरी में शॉपिंग मॉल का उद्धार करने गया है वहीं ये चारों दिव्यात्माएं आराम से बैठकर क्या कर रहे थे.. पढ़िए जरा.. 
पुष्पा जी का एक हाथ दिव्या की गोद में.. दिव्या का एक हाथ राखी जी गोद में और राखी जी का एक हाथ सुधा की गोद में..! ना जाने कितनी मेंहदी की कोन नीचे दबी कुचली सी पिचली हुईं सी आखिरी सांसे ले रही थीं.. मानो उनसे कह रहीं हों.. "हम जितनी रह गई हैं उसे भी अपनी अंगुलियों की पोर में भरकर हमें क़ैद से मुक्त करो.. दृश्य सुहावना था.. मगर कौन कितना मेंहदी लगाना जानता था.. ये तो हाथों में बनते रेखा चित्र से पूछे कोई..भई समय का सदोपयोग तो कोई इनसे सीखे..
खैर कथाकार ने सजग करते हुये राकेश को प्रेरित किया और
आगे कैप्शन में.. 🙏

©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी 
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राकेश-कहिये पुष्पा जी इस कालोनी में आपको क्या प्रॉब्लम है..? 
पुष्पा जी- प्रॉब्लम है मेरे बाथरूम में लगा शॉवर..! मेरे घर में जो शॉवर था मैं उसे टॉप से राइट टर्न करती थी तो वो झरना बन जाता था, और इस नये आशियाना में शॉवर को टॉप से लेफ्ट टर्न करो तब झरना बनता है... राकेश-ओह्ह.. तुमने ठीक से चेक किया.. 🤔
पुष्पा जी -हाँ तो क्या... मुझे आदत पड़ गई है टॉप से राइट टर्न करने की.. इसलिये मुझे वैसा ही सिस्टम चाहिए..
सुधा-अच्छा..! चलो दिखाओ जरा क्या प्रॉब्लम है..?  
पुष्पा जी-हाँ हाँ चलो चलो.. मेरे पिच्छू पिच्छू.. 
रेलगाड़ी... छुक पुक छुक पुक.. उइ माँ..