है तेरी आदत कोई या है कोई ज़िद 'फ़िकर'? तू ही बता दे बावरे मन, क्यों भागे तू इधर-उधर? कभी इस डगर, तो कभी उस डगर... कभी इसकी, तो कभी उसकी फ़िकर... आप ही तू सोचता, इससे मेरा क्या वास्ता.. फ़िर आप ही क्यों ढूंढता फिरे, उलझनो से निकलने का रास्ता.. रुक ज़रा, जी ले ये पल क्या पता, क्या होगा कल.. ये वक़्त जो चला जाएगा, फ़िर लौटकर न आयेगा.. समेट ले ख़ुशी के पल, अब तू भी बाहें खोलकर... चुरा ले कुछ हसीं के पल छोड़कर सारी फ़िकर... ©Janhavi Rao ayachi 'बावरा मन' है तेरी आदत कोई या है कोई ज़िद 'फ़िकर'? तू ही बता दे बावरे मन, क्यों भागे तू इधर-उधर? कभी इस डगर, तो