अब वो दिन वो पल न रहा, बचपन वाला कल न रहा, फूल और तितली हैं लेकिन, मन में वो हलचल न रहा, अंदर कुछ बाहर कुछ और, दिल भी अब निर्मल न रहा, मुश्क़िल था आसान कभी, आसाँ आज सरल न रहा, आँख में भी सैलाब थे तब, दरिया में भी जल न रहा, कश्ती भले थी कागज की, बहता मगर चपल न रहा, छुपा छुपाई खेलने वाला, बच्चों का वो दल न रहा, सबके पास समस्या गुंजन, पास किसी के हल न रहा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #पास किसी के हल न रहा#