हार-जीत के समीकरण में, लगे हुए सब वशीकरण में, मन माया का बँधक ठहरा, फँसे हुए सब जन्म-मरण में, भोग दासता का प्रतीक है, बंधनमुक्त हरि चिंतन में, अन्तर्दृष्टि मिटाए भव दुःख, फिर कोई न रहे उलझन में, हो बुनियाद जीत की पक्की, रहे भोग जब परिसीमन में, कर देते विभेद को पैदा, लगे हुए जो तुष्टिकरण में, ढूँढो मत विनाश के साधन, होती पीड़ा बहुत सृजन में, हो निष्काम कर्म जब गुंजन, मिले शांति फिर राम भजन में, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #होती पीड़ा बहुत सृजन में#