तुम्हारी आदत का क्या करूँ। तुम्हारी खुबसूरत का क्या करूँ। आ जाओ प्रकृति के साथ रहने, तुम्हारी कुदरत का क्या करूँ। प्रिये तुम सोलह श्रृगार करती हो, अब झूठी शोहरत का क्या करूँ। कभी दिन,कभी रात में सजती हो, अब तुम्हारी नियत का क्या करूँ। 'गोपाल' से प्रेम का रसपान किया, अब मिलावटी शरबत का क्या करुँ। ©Anup kumar Gopal कुदरत का क्या करूँ। #PARENTS