व्यथा में, भय में, मन में, कहीं अनंत में जिधर भटकूँ भीतर उलझे तम के भ्रम में मूक रहे तन भाग्य के हर आघात पर किन्तु चिन्ता के पथ पर मन भ्रम में सभी कार्य के सभी आधार पर माया जाल बिखरे सबकी सारी चेतना भाग्य के नेह में कितने अवावस्थित सारी योजनाओं पर मन के हि गढ़े किन्तु मन के हि भ्रम में देख मेघ पल में विचलित, पल में चंचल मन जो भरमाया रहता अपने हि भाव में ©Kavitri mantasha sultanpuri #भ्रम_में #KavitriMantashaSultanpuri