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आँगन गूँजे गीतों से ऋतु बसंत बौराई हे सखि, आँगन

आँगन गूँजे गीतों से

ऋतु बसंत बौराई  हे सखि, आँगन  गूँजे  गीतों  से।
नार बहार भरी  यौवन  से, करे  समागम  मीतों  से।
मंद सुगंध लिये पवन चली, धरा गगन पर छिटकाती।
काली कोयल कूक कूककर, मधुर स्वरों में है गाती।।

किंशुक फूल रहा है वन में, कमल खिले हैं सरवर में।
जूही  चंपा  नाच  रही  हैं, फूल  महकते  घर-घर  में।।
आया है उत्सव रंगों का, बाल  सखा अति हरष रहे।
सत रंगी से रंग झूमकर, आँगन आँगन  बरस रहे।।

फागुन गीत बजे घर घर में, व्यंजन भी बहु भाँति बने।
बाल युवा या हो नर - नारी, रंगों  में  हैं  सभी- सने।
मन में है उत्साह भरा अति,प्रिय की राह निहार  रहे।
प्रेम का रंग भर मन भीतर, स्नेह भरी  रसधार  बहे।।

बैर भुलाकर गले लगाओ, सब मिलकर खेलो होली।
खा पीकरके मौज मनाओ, खुश होकर अम्मा बोली।
यह  त्योहार  बड़ा  ही  प्यारा, रँग से  इसे  मनाते हैं । 
कोई  बड़ा न  कोई  छोटा, सबको  गले  लगाते हैं।।

©Godambari Negi
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