जब तक इच्छाएँ, न जीवित हो मन में , तब तक कहाँ मिले ? जीवन इस तन में, अब कौन सहारा देता है, जब स्वयं अकेले चलता हूँ, अब चाह नहीं, अंधियारो में उजियारे की, जब स्वयं अंधियारों में, मुर्दो सा भटक रहा हूँ, मै ईश्वर की कैसी इच्छा हूँ, मुझमें जीवन होते भी, मैं मुर्दो सा क्यों दिखता हूँ ? ©shayari and kavita By Rajesh Rj Nitukumari