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कभी साँझ लपेटू भौंर से कभी लूँ खबर कंगूरे

कभी   साँझ   लपेटू   भौंर   से
कभी लूँ खबर कंगूरे के मोर से
शर्वरी के आँचल में फिरसे उतर  आह आई है
अ आँख मुबारक हो फिर उनकी याद आई है !

अश्क   समेटूँ   हर   कोने  हर  छोर  से
दर्द भी झाँकने लगे फिर तिरछी कोर से
फिर यकबयक टूटी गाज की आवाज़ आई है
अ  हृदय मुबारक हो फिर उनकी याद आई है !

फिर  गुजरेंगे  योम  उसी  तौर से
सोम फिर निहारा जायेगा गौर से
फिर कंकन की खनक, पाजेब की झंकार  आई है
ओ आफताब मुबारक हो फिर उनकी याद आई है ! कवि की भावनाओं का सृजन है
आह दिल पर लगे तो वाह आमंत्रित है !
🙏
कंगूरा- शिखर
शर्वरी - रात
यकबयक- एकदम से
गाज- काँच की चूड़ी
योम- दिन
कभी   साँझ   लपेटू   भौंर   से
कभी लूँ खबर कंगूरे के मोर से
शर्वरी के आँचल में फिरसे उतर  आह आई है
अ आँख मुबारक हो फिर उनकी याद आई है !

अश्क   समेटूँ   हर   कोने  हर  छोर  से
दर्द भी झाँकने लगे फिर तिरछी कोर से
फिर यकबयक टूटी गाज की आवाज़ आई है
अ  हृदय मुबारक हो फिर उनकी याद आई है !

फिर  गुजरेंगे  योम  उसी  तौर से
सोम फिर निहारा जायेगा गौर से
फिर कंकन की खनक, पाजेब की झंकार  आई है
ओ आफताब मुबारक हो फिर उनकी याद आई है ! कवि की भावनाओं का सृजन है
आह दिल पर लगे तो वाह आमंत्रित है !
🙏
कंगूरा- शिखर
शर्वरी - रात
यकबयक- एकदम से
गाज- काँच की चूड़ी
योम- दिन