दोहा :- मन की मन से बात कर , मन समझेगा खूब । औरों की मत बात सुन , आज गया मन ऊब ।। मन की सुनकर आजतक , किए बहुत शुभ काम । फिर कहता मन आज है , चलो शरण प्रभु राम ।। रखे शरण प्रभु राम जी , मन की आज पुकार । मन की महिमा राम की , देंगें भव से तार ।। मन को कुंठित मत कहो , यह है एक विचार । मन ही तुमको एक दिन , ले जाये भव पार ।। मन मैला जिनका रहा, उनके नेक विचार । नेकी करके आज हम , बैठे हैं मझधार ।। प्रेम समझ पाया नहीं , कहता है दिलदार । जीवन बाजी हार के , बैठा मैं मझधार ।। बन मरहम जो भी मिले , दिए नई वो पीर । सिसक-सिसक कर कह रही , अब आँखो की नीर ।। दिखती हो गुडिया हमें , पर होती हो दूर । छूना चाहूँ मैं तुझे , पर होता मजबूर ।। मोर पंख ले हाथ में , देखे चारो ओर । मैं प्यासा पनघट तकूँ , मीत बना है चोर ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- मन की मन से बात कर , मन समझेगा खूब । औरों की मत बात सुन , आज गया मन ऊब ।। मन की सुनकर आजतक , किए बहुत शुभ काम । फिर कहता मन आज है , चलो शरण प्रभु राम ।। रखे शरण प्रभु राम जी , मन की आज पुकार ।