खिलखिलाऊँ, सिमट जाऊँ निखिल आकाश भर भेंटूँ निर्झर झरुँ उन्मादिनी उद्दाम भू विराट पे शीतल मलयवात सी बहती चली जाऊँ जो कहते कुसुमदल हवा से निर्बाध निरन्तर मैं हृदय का राग वो गाती चली जाऊँ कारण-अकारण से परे नयन नेहिल सौम्य से मन कोई सदयता से गुने मैं सहज कहती चली जाऊँ चुपचाप बैठे फूल को तितली सी जा चूमूँ बर्फीले होठों पर सुनहली किरण बन बोलूँ अवसाद के संसार का सशंकित मौन मैं तोड़ूँ हृदस्पंदनों में निरत झंकार है जिसकी मुदामय वाणी वीणा की सरस लय तार मैं छेड़ूँ बहे संगीत जीवन का हर कण्ठ से उन्मुक्त मैं जीवनगीत वसुधा का बरस गाती चली जाऊँ #lingeringlife