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ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें

ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में
तमाम तेरी हिकायतें हैं

ये तज़्किरे तेरे लुत्फ़ के हैं
ये शे'र तेरी शिकायतें हैं

मैं सब तिरी नज़्र कर रहा हूँ
ये उन ज़मानों की साअ'तें हैं

अहमद फ़राज़

©साहिर उव़ैस sahir uvaish
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