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मैं ने देखा जो ये नज़ारा कि हौसलों के कंधे झुके हु

मैं ने देखा जो ये नज़ारा कि हौसलों के कंधे झुके हुए थे
दर्द दिल  में ऐसा उट्ठा मानो दिल में जखम होए थे

 हौसलों के झुके जो कंधे, तो सुब्ह होगी न शाम होगी
न आसमाँ पे वो तारे होगें, जो पिछली  शब में चमक रहे थे

न फत्ह होगी ना जीत होगी, न उमंग होगी न तरंग होगी 
बस एक ठंढी सी राख होगी, कि गोया शोले बुझे हुए थे

©poetry_expression_thought
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