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लोग ------ औरों से ख़ुद को अलग और बेहतर दिखाते है

लोग
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औरों से ख़ुद को अलग और बेहतर दिखाते हैं लोग गवाह के शामियाने में हक़ीकत को दफ़नाते हैं लोग किसी का घर बसे या उजड़े मगर ख़ुद के लिए ज़रूर एक महल बनाते हैं लोग ग़लत के ख़िलाफ़ तो क्या सच का साथ देने से भी क़तराते हैं लोग

ख़ुद को भूल कर औरों की बहुत फ़िक्र करते हैं लोग फ़िक्र है तो फिर क्यों एक दुसरे से जलते हैं लोग बदलते वक़्त में क्या कुछ नहीं बदलते हैं लोग अपनी पे आए तो गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं लोग

पैसे के आगे प्यार और परिवार को भूल जाते हैं लोग अपने फ़र्ज़ को एहसान समझकर जताते और मनवाते हैं लोग कैसी परवरिश बच्चों की करते हैं लोग सही शिक्षा तो क्या संस्कार भी नहीं दे पाते हैं लोग

ख़ुशी की ख़ातिर कैसे-कैसे मन बहलाते हैं लोग जाने-अंजाने अक़्सर ही बहक जाते हैं लोग दूसरों से अलग और बेहतर बनना तो चाहते हैं लोग मगर ज़ोर और ज़िद्द में आकर बच्चों को अपने ही जैसा बनाते हैं लोग

मनीष राज

©Manish Raaj
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