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बंजर भूमि का चमकता सितारा..... पेज - २ ***********

बंजर भूमि का चमकता सितारा..... पेज - २
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अंधेरा  हो  चुका  था , मंगरू  अपनी  ‌पत्नी   सुलेखा  का  बेसब्री  से
इंतजार  कर  रहा था । बेटा  विकास  को जोरों  की भूख लगी  थी ।
इधर  मंगरू  बेटे को  भूखा   देख  खाना  बनाने कि  तैयारी  में जुट 
गया । मंगरु चावलं  की  हांडी  चूल्हा  पर चढ़ाया  हीं था  कि  पत्नी 
सुलेखा घर में  प्रवेश करते हीं बोली हटिये खाना मैं बना लेती हूं......
मंगरु ...... तुम थक कर आई हो...... थोड़ा आराम कर लो , तब तक
चावल बन जाएगा फिर तुम सब्जी बना लेना ........... इतना  कहकर 
मंगरू  घर  से  बाहर  चला  गया । इधर  सुलेखा  थोड़े  देर  के  बाद
खाना बनाने  में लग गई । रात  के लगभग  नौ बज चुके थें , सुलेखा
अपने बेटे विकास को खाना खिला रही थी ...............इसी वक्त मंगरु
घर में प्रवेश  करता है ..... बेटे को  भोजन  करता  देख  मंगरु अपने
हाथों से खाना खिलाने लगा । मंगरु और  सुनीता भी  भोजन करके
बेटे को साथ लेकर सोने चला गया ।  सुलेखा  थकि रहने  के कारण
जल्द सो  गई, लेकिन मंगरु  को नींद नहीं आ रही थी ............, मंगरु
के  दिमाग  में बार - बार अपने  बेटे  का तुतलाहट  वाली आवाज में
स्कूल जाने की इच्छा याद आ रही थी । बेटे को  किस  स्कूल में नाम
लिखाना है , कितना  पैसा लगेगा  इसी उधेड़बुन  में लगा  हुआ था ।
यही  सब  सोचते  सोचते  कब नींद  आ  गई  पता  ही  नहीं  चला । 
              दो दिन बाद रविवार  का दिन  था , सुबह  से हीं  जोरों कि
बारिश  हो रही थी , बारिश  तेज होने  के कारण मंगरु और  सुलेखा
दोनों  काम पर  नहीं जा सका । मिटृटी और खपड़े का घर , तुफानी
हवा और बारिश  साथ - साथ  होने से घर में पानी  चू रहा था । एक
कमरे का घर में मामूली सा कपड़ा , खाने पीने का सामान सब खाट
पर रखा  था और मंगरु अपने बेटे को  गोद में लेकर  पत्नी के साथ
चुपचाप खाट पर बैठा हुआ था।
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प्रमोद मालाकार की कलम से
_____________________
कहानी लगातार...पेज ...3

©pramod malakar #बंजर भूमि का चमकता सितारा-2

#cactus
बंजर भूमि का चमकता सितारा..... पेज - २
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अंधेरा  हो  चुका  था , मंगरू  अपनी  ‌पत्नी   सुलेखा  का  बेसब्री  से
इंतजार  कर  रहा था । बेटा  विकास  को जोरों  की भूख लगी  थी ।
इधर  मंगरू  बेटे को  भूखा   देख  खाना  बनाने कि  तैयारी  में जुट 
गया । मंगरु चावलं  की  हांडी  चूल्हा  पर चढ़ाया  हीं था  कि  पत्नी 
सुलेखा घर में  प्रवेश करते हीं बोली हटिये खाना मैं बना लेती हूं......
मंगरु ...... तुम थक कर आई हो...... थोड़ा आराम कर लो , तब तक
चावल बन जाएगा फिर तुम सब्जी बना लेना ........... इतना  कहकर 
मंगरू  घर  से  बाहर  चला  गया । इधर  सुलेखा  थोड़े  देर  के  बाद
खाना बनाने  में लग गई । रात  के लगभग  नौ बज चुके थें , सुलेखा
अपने बेटे विकास को खाना खिला रही थी ...............इसी वक्त मंगरु
घर में प्रवेश  करता है ..... बेटे को  भोजन  करता  देख  मंगरु अपने
हाथों से खाना खिलाने लगा । मंगरु और  सुनीता भी  भोजन करके
बेटे को साथ लेकर सोने चला गया ।  सुलेखा  थकि रहने  के कारण
जल्द सो  गई, लेकिन मंगरु  को नींद नहीं आ रही थी ............, मंगरु
के  दिमाग  में बार - बार अपने  बेटे  का तुतलाहट  वाली आवाज में
स्कूल जाने की इच्छा याद आ रही थी । बेटे को  किस  स्कूल में नाम
लिखाना है , कितना  पैसा लगेगा  इसी उधेड़बुन  में लगा  हुआ था ।
यही  सब  सोचते  सोचते  कब नींद  आ  गई  पता  ही  नहीं  चला । 
              दो दिन बाद रविवार  का दिन  था , सुबह  से हीं  जोरों कि
बारिश  हो रही थी , बारिश  तेज होने  के कारण मंगरु और  सुलेखा
दोनों  काम पर  नहीं जा सका । मिटृटी और खपड़े का घर , तुफानी
हवा और बारिश  साथ - साथ  होने से घर में पानी  चू रहा था । एक
कमरे का घर में मामूली सा कपड़ा , खाने पीने का सामान सब खाट
पर रखा  था और मंगरु अपने बेटे को  गोद में लेकर  पत्नी के साथ
चुपचाप खाट पर बैठा हुआ था।
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प्रमोद मालाकार की कलम से
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